सरकारी यूनिफाइड पेंशन स्कीम पर गहराता विवाद: विशेषज्ञों और कर्मचारियों की चिंताओं पर केंद्र सरकार का क्या रुख?
पेंशन सुधार या वित्तीय अस्थिरता? यूनिफाइड पेंशन स्कीम पर बढ़ती बहस
नई दिल्ली, 10 मार्च: भारत सरकार द्वारा 24 जनवरी को घोषित यूनिफाइड पेंशन
स्कीम (UPS) को लेकर न केवल कर्मचारियों बल्कि
आर्थिक विशेषज्ञों और वित्तीय विश्लेषकों के बीच भी गहन चर्चा हो रही है। सरकार इस
योजना को एक समावेशी और
दीर्घकालिक पेंशन समाधान के रूप में प्रस्तुत कर रही है, लेकिन विभिन्न
कर्मचारी संगठनों और नीतिगत विशेषज्ञों ने इस योजना में कई संरचनात्मक खामियों की
ओर इशारा किया है। सरकार द्वारा सुझाव मांगे जाने के बावजूद, कर्मचारियों का
मानना है कि इस योजना में ऐसे महत्वपूर्ण मुद्दे मौजूद हैं जो उनके आर्थिक भविष्य और
सेवानिवृत्ति सुरक्षा को खतरे में डाल सकते हैं।
कर्मचारियों और विशेषज्ञों की प्रमुख
आपत्तियाँ
यूपीएस को लेकर उठ रहे विवाद को विस्तार से समझने के लिए डॉ. मनजीत सिंह पटेल
ने पांच प्रमुख
मुद्दों को रेखांकित किया
है, जो इस स्कीम के
व्यापक प्रभावों को दर्शाते हैं। उनके अनुसार, यदि इन चिंताओं को समय रहते दूर नहीं
किया गया, तो यह योजना
कर्मचारियों के वित्तीय हितों के साथ समझौता करने वाली साबित हो सकती है।
1. पेंशन पात्रता आयु में बदलाव: क्या यह
एक वास्तविक लाभ है?
सरकार ने पेंशन पात्रता की आयु को 50 वर्ष से घटाकर 25 वर्ष की सेवा अवधि कर दिया है, जिससे यह संकेत
मिलता है कि कर्मचारी पिछले 12 महीनों के औसत वेतन
का 50% पेंशन के रूप में
प्राप्त कर सकते हैं। हालांकि, यह पेंशन योगदानी (Contributory) आधार पर दी जाएगी, जो पुरानी पेंशन
स्कीम (OPS) से भिन्न है।
मुख्य चिंता यह है कि जो कर्मचारी 30 या 35 वर्षों तक सेवा
देंगे, उनकी पेंशन की गणना
किस आधार पर होगी? क्या उन्हें उस अतिरिक्त सेवा अवधि का
समुचित लाभ मिलेगा? यदि नहीं, तो क्या यह योजना
वास्तव में न्यायसंगत है? ये ऐसे प्रश्न हैं
जिनका उत्तर सरकार को स्पष्ट रूप से देना होगा।
2. बर्खास्त कर्मचारियों के लिए कोई
सुरक्षा नहीं?
यूपीएस में एक प्रमुख विसंगति यह है कि यदि किसी कर्मचारी को किसी भी कारण से नौकरी से निकाल
दिया जाता है या बर्खास्त कर दिया जाता है, तो वह पेंशन लाभ से वंचित हो सकता है।
यह नियम उन कर्मचारियों के लिए अत्यंत अनुचित है जिन्होंने
वर्षों तक अपने वेतन से अंशदान किया है।
इसके अलावा, जो कर्मचारी किसी
शारीरिक अक्षमता, दुर्घटना, या अनिवार्य
सेवानिवृत्ति का सामना करते हैं, उनके लिए भी कोई स्पष्ट नीति नहीं दी
गई है। कर्मचारियों की
मांग है कि उनका संचित अंशदान
और ब्याज सहित पूरी राशि दी जानी चाहिए ताकि उनकी वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।
3. योगदान पर दोहरी कराधान का मुद्दा
कर्मचारी वेतन का 10% NPS में योगदान कर रहे
हैं, लेकिन इस पर आयकर
भी लगाया जा रहा है। इससे आयकर के दोहरे बोझ की स्थिति उत्पन्न
हो रही है, जिसे कर्मचारी
संगठनों ने अन्यायपूर्ण और
अव्यवहारिक करार दिया है। यदि
सरकार इस धनराशि को रिटायरमेंट फंड के रूप में सुरक्षित मानती है, तो उस पर आयकर
क्यों लगाया जा रहा है?
इसके अतिरिक्त, सेवानिवृत्ति के
समय कर्मचारियों को मिलने वाली एकमुश्त राशि पर भी कर लागू किया जाता है, जिससे उनका कुल
पेंशन लाभ कम हो जाता है। विशेषज्ञों के अनुसार, सरकार को या तो इस पर टैक्स छूट
देनी चाहिए या कर्मचारियों को उनके धन पर अधिक नियंत्रण प्रदान करना चाहिए।
4. एकमुश्त सेवानिवृत्ति लाभ: स्पष्ट
दिशा-निर्देशों का अभाव
यूपीएस के तहत सेवानिवृत्त कर्मचारियों को उनके अंतिम वेतन और
महंगाई भत्ते के आधार पर एकमुश्त भुगतान दिया जाएगा। हालांकि, 25 वर्ष से अधिक सेवा
करने वाले कर्मचारियों को मिलने वाले लाभों की स्पष्ट गणना उपलब्ध नहीं है, जिससे उनकी वित्तीय
स्थिरता पर प्रश्नचिह्न खड़ा होता है।
आर्थिक विशेषज्ञों का सुझाव है कि सरकार को पेंशन के अलावा
ग्रेच्युटी, स्वास्थ्य लाभ और
अन्य सेवानिवृत्ति लाभों की भी स्पष्ट रूपरेखा पेश करनी चाहिए, ताकि कर्मचारी अपनी
सेवानिवृत्ति को लेकर बेहतर योजना बना सकें।
5. एनपीएस बनाम यूपीएस: पेंशन असमानता का
संकट
वर्तमान में, राष्ट्रीय पेंशन
प्रणाली (NPS) के तहत सेवानिवृत्त कर्मचारियों को
मात्र ₹2,000 से ₹3,000 प्रति माह की पेंशन दी जा रही
है, जो कि बढ़ती महंगाई
के मुकाबले बेहद अपर्याप्त है।
कर्मचारियों की मांग है कि यदि कोई यूपीएस को अपनाता है, तो उसकी कुल पेंशन
एनपीएस लाभों की कटौती से कम नहीं होनी चाहिए और उसे सेवानिवृत्ति के बाद उचित जीवनयापन हेतु
पर्याप्त वित्तीय सुरक्षा मिलनी चाहिए।
इसके अलावा, सरकार को यह भी
स्पष्ट करना चाहिए कि 25 वर्ष की सेवा अवधि
पूरी करने वाले कर्मचारियों के लिए पेंशन की गणना कैसे होगी और क्या उनके लिए
कोई अतिरिक्त लाभ निर्धारित किए जाएंगे। वर्तमान में, इन मुद्दों पर कोई
ठोस दिशा-निर्देश उपलब्ध नहीं हैं।
पुरानी पेंशन स्कीम (OPS) की बहाली की बढ़ती
माँग
कई कर्मचारी संगठन और नीति विशेषज्ञ पुरानी पेंशन स्कीम (OPS) की पुनर्स्थापना या फिर यूपीएस में आवश्यक
संशोधन की माँग कर रहे हैं, ताकि सभी सरकारी
कर्मचारियों को समान वित्तीय सुरक्षा मिल सके।
वर्तमान में, कुछ राज्य सरकारें पहले
ही ओपीएस को पुनः लागू करने की दिशा में कदम उठा चुकी हैं, जिससे यह प्रश्न
उठता है कि क्या केंद्र सरकार
भी इस दिशा में कोई निर्णय लेगी? यदि सरकार कर्मचारियों की मांगों को नकारती है, तो आने वाले समय में बड़े स्तर पर विरोध
प्रदर्शन और औद्योगिक अशांति हो सकती है।
निष्कर्ष
यूनिफाइड पेंशन स्कीम (UPS) पर विवाद बढ़ता जा रहा है, और सरकार को इसे गंभीरता से लेने की आवश्यकता है। यदि इस योजना को सफल बनाना
है, तो इसे सभी कर्मचारियों के
वित्तीय हितों को ध्यान में रखते हुए संशोधित करना होगा।
सरकार द्वारा इस योजना को पारदर्शी और लाभकारी बनाने के लिए विस्तृत चर्चाएँ
आवश्यक हैं। जब तक यूपीएस में निहित जटिलताओं और संभावित कमियों को दूर नहीं किया
जाता, तब तक यह विवादित
बनी रहेगी।
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